जनपद बांदा
सरकार द्वारा बैंको के निजीकरण के विरोध में आज दूसरे दिन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के आह्वान पर सभी राष्ट्रीयकृत व ग्रामीण बैंको के सभी स्टॉफ हड़ताल पर हैं।
ऐसे समय में जब वृद्धि दर काफी सुस्त है,जो कि आवश्यकता है वह है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको को और सुदृढ़ करने की । यह एक विडंबना है कि उसके बजाय , सरकार निजीकरण करने और सरकारी स्वामित्व वाले बैंको को निजी कार्पोरेटो को सौंपने का प्रस्ताव कर रही है,जिनमे अधिकांश बैंको के बड़े डिफॉल्टर्स हैं।
पिछले पांच दशकों मेंसार्वजनिक क्षेत्र के बैंको का योगदान और भूमिका हम रही है। सरकारी बैंक लोगों की मेहनत से अर्जित बचतो के अभी रक्षक और संरक्षक बन गए हैं। सरकारी बैंक व्यापक आर्थिक विकास और प्रगति के इंजन बन गए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने हमारे बैंकों के चरित्र को वर्ग बैंकिंग से सार्वजनिक बैंकिंग में बदल दिया है। अब जब बैंकिंग आम आदमी के लिए सुलभ हो गई है सरकार इसे निजी हाथों में देने को उतावली है।
सरकार को यह स्वीकार करना होगा कि उनके पहले के सभी उपायो जैसे कि ऋण वसूली, न्यायाधिकरण (डी0आर0टी0) आस्ति वसूली कंपनी (ए0आर0सी0) ने बैंकों के उमड़े हुए खराब ऋणों को वसूल करने के लिए वांछित परिणाम नहीं दिए हैं तो जो आवश्यकता है वह डिफाल्टरो पर अपराधिक कारवाही करने सहित वसूली कानूनों और कानूनी प्रावधानों को कड़ा करने की है।
लेकिन यह एक विडंबना है कि सरकार कारपोरेट चूक कर्ताओं का साथ देने के लिए बैंकों की बैलेंस शीट में लीपापोती के लिए बैंड बैंक स्थापित करना चाहती है। बजट में कई अन्य प्रतिकूल जन विरोधी घोषणाएं हैं। एल आई सी को विनिवेश के लिए निशाना बनाया गया है।
भारत सरकार अधिक नौकरियां पैदा करने की बात करती है लेकिन बैंकों के निजीकरण के परिणाम स्वरूप अस्थाई नौकरियों की कमी और अधिक से अधिक अनुबंध श्रम को रोजगार मिलेगा। मौजूदा आरक्षण व्यवस्था समाप्त हो जाएगी क्योंकि निजी बैंकों के आरक्षण नीति लागू नहीं होती है । इसलिए सरकार का यह कदम कर्मचारियों के इन वर्गों की आजीविका तथा आजीविका सुरक्षा के विरुद्ध है।
बैंकों के निजीकरण काबड़े किसानों को मिलता है पर पड़ने वाला है। गांव गांव में कार्यरत बैंकों की संख्या में बेतहाशा कमी होगी। निजी बैंकों का मुख्य फोकस बड़े शहर तथा मझोले शहरों पर ही रहता है। बड़े शहर गरीब जनता की पहुंच से काफी दूर होते हैं जिसका सीधा असर जनता पर पड़ेगा।
निजी बैंको द्वारा कमाया दया लाभ सिर्फ बैंक मालिकों के लिए होगा जबकि सरकारी बैंकों का परिचालन लाभ सरकार की सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं व सभी जन मानस के लिए है।
Crime 24 Hours
संवाददाता – मितेश कुमार बांदा