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प्राकृतिक खेती में कदन्न फसलों व प्राकृतिक उत्पाद का हब बनाने की आवष्यकताः सूर्यप्रताप शाही, मिलेट दिवस पर बोले प्रदेश के कृषि मंत्री

 

जनपद बांदा।

गौ आधारित खेती को बढ़ावा देना समय की मांग है। प्रदेश ही नहीं बल्कि देश व विश्व के जन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। आज का बच्चा कुपोषित पैदा हो रहा है और कई बीमारियों से जूझ रहा है। भोजन में पोषण की कमी से यह स्थिति पैदा हुयी। कदन्न फसलों के उपयोग से हम सभी व आने वाली पीढ़ी कुपोषण से प्रभावित नहीं होंगी। हरित क्रान्ति समय की मांग थी परन्तु कदन्न फसलें हमारी थाली से गायब हो गयीं। देष में खेती योग्य भूमि की उत्पादकता घट रही है इसे प्राकृतिक रूप से उत्पादक बनाना आवष्यक है। देष के यषस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयास से वर्ष 2023 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मिलेट वर्ष घोषित किया गया है। आपके प्रयास से ही 72 देषों ने मिलेट फसलों के उत्पादन का संकल्प लिया है। यह हमारे लिये ही नहीं बल्कि समस्त देषवासियों के लिये गौरव का विषय है। बुन्देलखण्ड के किसान भाईयों को इस बात के लिये जागरूक होना पड़ेगा कि कम लागत, कम पानी एवं कम संसाधन में ज्यादा फायदा मिलेट फसल ही दे सकती है। कठिया गेहूं की तरह मिलेट की फसलें बुन्देलखण्ड की पहचान बनें। यह उद्बोदन बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा व उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम मिलेट दिवस-2022 के अवसर पर मंत्री, कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान, उ.प्र., श्री सूर्य प्रताप शाही जी ने बतौर मुख्य अतिथि कही।
माननीय मंत्री जी ने इस बड़े आयोजन के लिये विष्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 एन0 पी0 सिंह का बहुत ही आभार एवं धन्यवाद व्यक्त किया। साथ ही यह भी कहा कि हमारी जिम्मेदारी यहीं पूर्ण नहीं होती, विष्वविद्यालय अपने प्रक्षेत्र पर एक ऐसा स्थान निर्धारित करे जिसमें सभी मिलेट फसलों को प्रदर्षित कर सके। विष्वविद्यालय के वैज्ञानिक हैदराबाद से बीज मंगाकर कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से किसानों तक बीज उपलब्ध करायें। बुन्देलखण्ड में दलहन तिलहन के साथ-साथ मिलेट फसलों की सम्भावनायें अपार हैं। इन फसलों के प्रसंस्करण में रोजगार की अपार संभावनायें है। कार्यक्रम में विषिष्ट अतिथि मा. मंत्री, उद्यान एवंखाद्य प्रसंस्करण, उ.प्र., श्री दिनेश प्रताप सिंह जी ने कहा कि मिलेट के गुणकारी विषय के ज्ञान को गांव-गांव व जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है, जिससे देष का स्वास्थ्य अच्छा रहे। गेंहूं चावल के साथ-साथ मिलेट भी हमारी थाली का हिस्सा बने। इसके उपयोग से हम स्वस्थ एवं दीर्घायु होंगे। इस कार्यक्रम के माध्यम से एवं पूर्व भ्रमण से बुन्देलखण्ड को जानने का अवसर प्राप्त हुआ। मा0 मंत्री जी ने कहा कि औद्यानिकी के क्षेत्र में हर जिले में दो सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस बनाने की योजना है जो जल्दी ही शुरू किया जाएगा। बांदा में खजूर उत्पादन की अपार संभावनायें है।
विशिष्ट अतिथि कैप्टन विकास गुप्ता, अध्यक्ष, उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद, लखनऊ ने अपने संबोधन में कहा कि प्रकृति के साथ-साथ खेती एवं फसलों में विविधिता आवष्यक है। इसे किसानों को अंगीकृत करना आसान है। बुन्देलखण्ड में इन फसलों के विकास एवं उसके विपणन का रोड मैप तैयार करना आवष्यक है। डॉ. विलास ए. टोनापी, पूर्व निदेशक, भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद ने तकनीकी सत्र में बताया कि उत्तर प्रदेष के 19 जिलों में मिलेट की खेती होती है। इन फसलों में पोषक तत्व ज्यादा तो है ही कम पानी में भी अच्छा उत्पादन देती है। इसके जन-जन में उपयोग हेतु सप्लाई-चेन तथा पी.डी.एस. के माध्यम से पहुंचाना होगा। मांग बढ़ेगी तो किसान उत्पादन करेगा। मांग के लिये प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन पर जोर देना होगा। डॉ. संजय सिंह महानिदेशक, उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद, लखनऊ ने कहा कि किसानों को मोटे अनाज के लिये जागरूक करें।
विष्वविद्यालय के कुलपति, प्रो0 एन. पी. सिंह ने अपने स्वागत वक्तव्य में सभी अतिथियों का स्वागत किया एवं कहा कि यह एक शुरुवात है, अगले एक साल तक अभियान के तहत कृषि विज्ञान केन्द्रों के साथ पूरे बुन्देलखण्ड में कार्य करेंगे। इस मंच के माध्यम से किसानों को पानी संचय करने एवं सूक्ष्म सिंचाई यंत्र को अपनाने का आह्वान किया। कार्यक्रम में विषिष्ट अतिथि के रूप में अयोध्या सिंह पटेल, अध्यक्ष, बुन्देलखण्ड विकास बोर्ड, प्रकाश द्विवेदी विधायक, बांदा सदर एवं श्रीमती ओममनी वर्मा, विधायक, नरैनी उपस्थित रहे। इस अवसर पर बुन्देलखण्ड के कई किसानों जैसे- रघुवीर सिंह, राम अभिलाष, राजेष कुमार, रघुनन्दन, जगदीष, राजेष सिंह एवं मधुशूदन को कदन्न फसलों मे उत्कृष्ट उत्पादन के लिये पुरस्कृत किया गया। विष्वविद्यालय के निदेषक प्रसार प्रो0 एन0 के0 बाजपेई ने धन्यवाद ज्ञापन तथा कार्यक्रम का संचालन डा0 सौरभ ने किया। कार्यक्रम में सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिक, कृषक, महिला कृषक, जन प्रतिनिधि एवं विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण, छात्र-छात्रायें उपस्थित रहे।

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