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ब्रम्हलीन पद निर्माण साईं त्यागी जी परमहंस महाराज की पुण्य स्मृति में संतो ने ज्ञान और भक्ति की गंगा बहाई

तिंदवारी (बांदा) 21 मई

ब्रह्मलीन पद निर्वाण साईं त्यागी जी परमहंस महाराज की पुण्य स्मृति में ग्राम सिंघौली में आयोजित पांच दिवसीय संत सम्मेलन के चौथे दिन यहां बड़ी संख्या में जुटे संतो ने ज्ञान और भक्ति की गंगा बहायी।
ग्राम सिंघावली के त्यागी स्वामी आश्रम प्रांगण में आयोजित संत सम्मेलन में महामंडलेश्वर स्वामी रामदेव जी महाराज, बाकी, जिला हमीरपुर ने कर्म और भाग्य पर बोलते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान है। इसमें भाग्य की नहीं, कर्म की प्रधानता है, पर कर्म से विमुख आलसी लोग इसे भाग्यवादी कहकर तर्क देते हैं। वस्तुतः मनुष्य का चिंतन ही कर्म रूप में परिणत होता है। फिर संचित और क्रियमाण कर्म ही भाग का निर्माण करते हैं, जिसे प्रारब्ध कहा जाता है। किंतु फल तो कर्म के अनुसार ही मिलते हैं, इसमें भाग का कोई दोष नहीं। सरसैया पर अपार वेदना सहन करते भीष्म पितामह इसके उदाहरण हैं। जिन्हें सताधिक जन्म पूर्व एक सांप को कांटो में फेंकने का दंड मिला था। अतः मनुष्य का चिंतन उत्कृष्ट होना चाहिए जिससे उनसे प्रसूत कर्म भी उत्कृष्ट हों और भाग को सौभाग्य में परिवर्तित कर सकें। अतः भाग्य का निर्माता कोई और नहीं, हम स्वयं हैं। कर्म को पूजा मानने वाले देश में भाग्यवादी चिंतन नितांत भ्रामक है। प्रत्येक मनुष्य को अपने उत्कृष्ट चिंतन और सुंदर कर्मों से अपना भाग्य विधाता स्वयं बनना चाहिए। संत सम्मेलन का कुशल संचालन नंना जी रामायनी द्वारा किया गया।
इस अवसर पर कार्यक्रम व्यवस्थापक संत प्रसाद शाह महाराज, स्वामी विचारानंद चित्रकूट, भूमानंद महाराज चित्रकूट, मंगलानंद स्वामी चित्रकूट, गोपालानंद स्वामी चित्रकूट, जयरामदास जसईपुर, भाजपा नेता आनंद स्वरूप द्विवेदी, रवि प्रकाश सिंह उर्फ संजय प्रबंधक शिव दर्शन महाविद्यालय, ग्राम प्रधान अरुण कुमार शुक्ला, भिडौरा प्रधान शिवनायक सिंह परिहार, प्रदीप सिंह पटेल बबेरू, बड़ेलाल सिंह पटेल, अरुण सिंह पटेल प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

Crime 24 Hours से मितेश कुमार की रिपोर्ट

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