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होली के रंगों की गाथा का है बुंदेलखंड से पुराना नाता

बेहतर है ! बेहतर है अगर बुंदेलखंड की पहचान सिर्फ एक पिछड़े प्रान्त के रूप में नहीं है, यूँ तो बुंदेलखंड की पहचान अब तक एक पिछड़े प्रान्त के अलावा वीरांगनाओं की भूमी के तौर पर होती रही है पर बुंदेलखंड का एक रंग और भी है जिससे शायद काफी लोग अब तक अंजान हैं। रंगों का त्यौहार होली जिसमें सारा देश सराबोर रहता है वह दरसल बुंदेलखंड की धरती की ही देन है। होली की कथाओं के बारे में तो कई बार किताबों में पढ़ा गया है, पर प्रल्हाद और नरसिंह भगवान की महिमा का लेखाजोखा अपने अंदर समेटने वाली भूमी अब तक कहीं गुमनामी में अंगड़ाई ले रही थी। पर इस साल इस भूमि को गुमनामी के अंधेरों से ऊजाले के तट पर लाने का काम शासन ने बखूबी किया है। बुंदेलखंड की झाँसी से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर बसा एरच होली और उसकी परम्पराओं का जीता जागता गवाह है। शासन द्वारा 5 दिवसीय एरच के होली महोत्सव के लिए पर्यटन विभाग को भरपूर सहयोग दिया जा रहा है जो कि इस बात पर मुहर लगाता है कि होली का पर्व बुंदेलखंड के एरच की ही देन है।
0 हरगोविन्द कुशवाहा ने बताया होली का इतिहास
बुंदेलखंडी संस्कृति के जानकार व इतिहासकार हर गोविन्द कुशवाहा ने बताया कि झाँसी जिले में गरौठा तहसील के पास बेतवा नदी के किनारे बसा कस्बा एरच को सतयुग कालीन नगर माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार श्रीमद भागवत के सातंवे स्कन्द के 37 वें और 38 वें अध्याय में कहा गया है कि जब विष्णु के नौकर जय और विजय को सनक सदानन सनत कुमार ने श्राप दिया कि वह तीन जन्म तक राक्षस के रूप में ही जन्म लेंगे तब उनका पहला जन्म हिरण्यकश्यप और हिरणायक्ष के रूप में बुंदेलखंड की एरच नगरी में हुआ और हिरण्यकश्यप को प्रल्हाद पुत्र के रूप में प्राप्त हुआ जो कि भगवान विष्णु का महाभक्त था। हर गोविन्द कुशवाहा बताते हैं कि इन कथाओं का विस्तृत रूप से वणर्न उपनिशदों और पुराणों में पाया जाता है। केवल इतना ही नहीं अंग्रज़ों द्वारा लिखे गए झाँसी के गजेटियर के पृष्ट 331 पर भी इसका वर्णन मिलता है। एरच में बेतवा नदी के किनारे बसा खमा गाँव का नाम खमा दरसल उसी खम्बे के कारण पड़ा है जिसमें से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप का वध किया था, यही नहीं बेतवा नदी के किनारे डिकोली गाँव के अंदर एक डों है जिसको डेकाचन्द पर्वत के नाम से जाना जाता है वहां पर एक प्रह्लाद डों है जहाँ पर प्रह्लाद को फेंका गया था। इसके अलावा हर गोविन्द कुशवाहा बताते हैं कि 1975 में जब पुरातत्व विभाग द्वारा एरच में खुदाई की गयी थी तो होलिका की मूर्ति पायी गयी जिसमें वह प्रल्हाद को गोद में बैठाये हुए देखी जा सकती है, यह मूर्ति फ़िलहाल एरच के किले में स्थापित है। इन सबके अलावा सुंगमित्र, मित्रवंश, नागवंश के सिक्कों का मिलना और नाव के द्वारा व्यापार करने के अवशेश मिलना होली की जन्मभूमि बुंदेलखंड होने की तरफ ही इशारा करते है। सनातन धर्म के प्रमुख भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से 3 अवतार बुंदेलखंड के एरच के लिए ही हुए थे। जिसमें से पहला अवतार था वाराह का जिन्होंने हिरण्याक्ष (हिरण्यकश्यप का भाई ) का वध किया था , दूसरा अवतार भगवान नरसिंह के रूप में लिया जिसमें उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध किया था और तीसरा अवतार बामन अवतार था जिन्होंने प्रह्लाद के बेटे बेहरूचन और बेहरूचन के बेटे बलि को छलने के लिए अवतार लिया था। ऐतिहासिक दृष्टि से एरच का बुंदेलखंड में काफी महत्वपूर्ण स्थान है।
0 ऐसे हुआ रंगों में रंग जाने का शुभारम्भ
ऐसा कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप के मारे जाने के बाद और होलिका के जल कर खाक होने के बाद वातावरण प्रदूषित हो गया था तब रंग पंचमी पर लोगों ने एक दूसरे को रंग लगाकर एक नई रीत का आगाज़ किया था। माना जाता है कि हिरण्यकश्यप और होलिका के मरने के बाद असुरों और देवताओं में जब युद्ध की नौबत आयी तब भगवान विष्णु ने एक पंचायत का आयोजन किया और प्रह्लाद का पक्ष लेते हुए देवताओं और असुरों के बीच की दुश्मनी को खत्म करने का निर्णय लिया। तब से ही होली को न सिर्फ बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है बल्कि इस दिन लोग अपने पुरानी दुश्मनी के रंग को भूल कर दोस्ती के नए रंग की पहल भी करते हैं।
0 एरच महोत्सव देगा बुंदेलखंड को नई पहचान
शासन द्वारा मिले सहयोग से पर्यटन विभाग द्वारा एरच में 5 दिवसीय होली महोत्सव को सरकारी शक्ल तो मिली ही है पर इसके साथ ही यह पूर्ण रूप से पंजीकृत महोत्सव है जो कि एरच को एक नई पहचान देगा। यह महोत्सव 25 मार्च से 29 मार्च तक चलेगा जिसमें संगोष्ठी, कवी सम्मेलन एंव एरच के ऐतिहासिक महत्व को लोगों तक पहुँचाया जायगा। इस महोत्सव का आयोजन भक्त प्रह्लाद जन कल्याण संस्थान के माध्यम से करवाया जा रहा है। इसके अलावा एरच कि ऐतिसिक्ता को सहेजने और पर्यटन स्थलों को विकसित करने को लेकर भी पर्यटन विभाग द्वारा विभिन्न तरह के प्रयास किये जा रहे है।
0 इन्होंने कहा
– भक्त प्रह्लाद जन कल्याण संस्थान के अध्यक्ष अमित चौरसिया ने बताया कि होली कि शुरुआत एरच से ही हुई और हमारी संस्थान द्वारा विगत कई वर्षों से एरच होली महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है, पर इस साल शासन के सहयोग से इस कार्यक्रम को बड़ा रूप मिला है, जिससे सारे देश भर में एरच को होली की जन्मभूमि के तौर पर जाना जायगा। इस 5 दिवसीय कार्यक्रम के माध्यम से बुंदेलखंड कि संस्कृति को सहेजने का और बुंदेली कलाकारों को सम्मानित करना का हमने पूर्ण रूप से प्रयास किया है ।
– क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी एस के दुबे ने बताया कि एरच में पौराणिक अवशेषों को मिलना एरच के इतिहास 3000 साल पुराना होने पर ज़ोर देते हैं। एस के दुबे ने बताया कि एरच को प्राचीनकाल में एरिकच्छ के नाम से जाना जाता था, ऐरी बेतवा को कहा जाता है और कच्छ मतलब कछार, यानि कि ऐसा नगर जो बेतवा की कछार पर स्थित हो। एरच की गरिमा संजोग कर रखने के लिए हम सब प्रयासरत हैं।
– पर्यटन विभाग के उप निर्देशक आरके रावत ने कहा है कि होली की शुरुआत एरच से ही हुई है और इसीलिए लिए इस नगर की ऐतिहासिकता को जन-जन तक पहुँचाने के लिए हम पूर्ण रूप से प्रयासरत हैं और इस स्थल को विकसित करने और पर्यटन स्थल बनाने के लिए भी पर्यटन विभाग संकल्पित है।

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