जनपद बांदा।
जलियांवाला बाग कांड को कभी भुलाया नहीं जा सकता है, इस दिन अंग्रेजों ने बड़ी बेरहमी से एक बाग में उपस्थित हुए लोगों पर फायरिंग शुरू कर दी थी। अंग्रेजों ने रॉलेट एक्ट के तहत कांग्रेस के सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया था, जिसके विरोध में ये लोग पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में प्रदर्शन कर रहे थे डायर के इशारे पर किए गए इस नरसंहार की आज भी लोग आलोचना करते हैं। ये कांड इतना भयानक था कि जब भी इसके बारे में बात होती है, शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जनरल डायर ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर दनादन गोलियां चलवा दी थीं और बाग का गेट बंद कर दिया था। लोग बाग से बाहर नहीं निकल पाए, कुछ लोगों ने कुएं में कूदकर अपनी जान बचाई तो कुछ लोग दीवारें फांदकर अपनी जान बचाने लगे। जनरल डायर की इस हरकत पर स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह इतना गुस्सा हुए कि उन्होंने डायर को जान से मारने का मन बना लिया था और 21 साल बाद अपना बदला पूरा किया था।
आज उधम सिंह की पुण्यतिथि है, आइए उनके बारे में कुछ दिलचस्प जानकारियों और उनकी देश के स्वाभिमान के लिए की गई संघर्ष यात्रा पर नजर डालते हैं.बचपन में ही छूटा माता-पिता का साथ 26 दिसंबर 1899 को सरदार उधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। उनका असली नाम शेर सिंह था। उनके एक बड़े भाई थे, जिनका नाम मुख्ता सिंह था। सात साल की उम्र में ही उधम सिंह अनाथ हो गए और इसके बाद दोनों भाइयों को अनाथालय में रहना पड़ा था। साल 1917 में भाई मुख्ता सिंह की मौत हो गई और उधम सिंह ने भारत के आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने का फैसला किया। साल 1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड के बाद उधम सिंह ने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई जारी रखी और तय किया कि वो अपना सारा समय देश के नाम कर देंगे।
उधम सिंह भी नास्तिक थे भगत सिंह के फैन थे उधम सिंह आजादी की लड़ाई में उधम सिंह गदर पार्टी की ओर से लड़े, जिसके लिए उन्हें पांच साल की सजा भी सुनाई गई। लाहौर जिले में उधम सिंह की मुलाकात भगत सिंह से हुई। वे भी भगत सिंह की तरह किसी धर्म में विश्वास नहीं करते थे, वे पूरी तरह नास्तिक थे। जेल से छूटने के बाद उधम सिंह नाम बदलकर और पासपोर्ट बनाकर विदेश चले गए।सरदार उधम सिंह को देशभक्ति के गीत गाना बेहद अच्छा लगता था और इसी के साथ वो रामप्रसाद बिस्मिल के भी प्रशंसक थे। ऐसा कहा जाता है कि उधम सिंह, भगत सिंह को अपना गुरू मानते थे।जनरल डायर और माइकल ओ’ ड्वायर को मारने की ली प्रतिज्ञा ऐसा माना जाता है कि जलियांवाला बाग कांड उधम सिंह की आंखों के सामने हुआ था, वो इस कांड के साक्षी थे। उन्होंने जनरल डायर की सभी करतूतों को अपनी आंखों से देखा था। यहीं पर उधम सिंह ने जलियांवाला बाग की मिट्टी को हाथ में लेकर प्रतिज्ञा ली कि वो जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गवर्नर माइकल ओ’ ड्वायर को सबक सिखाएंगे।
इसके बाद उधम सिंह लोगों से चंदा लेकर विदेश चले गए और दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, अमेरिका और ब्राजील की यात्रा कर उन्होंने चंदा इकट्ठा किया। इस बीच देश में कई क्रांतिकारी अपनी जान गंवा रहे थे लेकिन उधम सिंह अपने लक्ष्य को लेकर डटे हुए थे। उधम सिंह के लंदन पहुंचने से पहले ही एक बीमारी के चलते जनरल डायर की मौत हो गई लेकिन सरदार उधम सिंह ने माइकल ओ’ ड्वायर को मारने का पूरा मन बना लिया था।
माइकल ओ’ ड्वायर की मृत्यु
13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के कैक्स्टन हॉल में बैठक चल रही थी और इस बैठक में माइकल ओ’ ड्वायर भी वक्ता के तौर पर आए थे। इसी बैठक में सरदार उधम सिंह भी जा पहुंचे। सरदार उधम सिंह ने एक किताब के पन्नों को अपनी रिवॉल्वर के आकार जितना काट दिया और उसमें अपनी बंदूक छिपा कर अंदर दाखिल हुए।बैठक के बाद उधम सिंह ने माइकल ओ’ ड्वायर को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी और अपना बदला पूरा किया। वहां से उधम सिंह ने भागने की कोशिश नहीं की और गिरफ्तार हो गए। इसके बाद उनकी कोर्ट में पेशी हुई और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।
उधम सिंह को फांसी की सजा
चार जून 1940 को उधम सिंह को दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। 1974 में ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को लौटा दिए। इस कार्य को लेकर उधम सिंह की हर जगह तारीफ हुई, यहां तक पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी उधम सिंह की तारीफ की थी। आज महान क्रांतिकारी उधम सिंह जी की पुण्यतिथि पर मौजूद रहे शालिनी सिंह पटेल , शिवानी सिंह गौतम , दिनेश सिंह , राममिलन वर्मा , कृपाल यादव , रविन्द्र कुमार भारती , श्यामबाबू त्रिपाठी , सीताराम फौजी , चुन्नी देवी , मजदूर यूनियन अधयक्ष, राजकुमारी वर्मा, रनों देवी , रोशनी देवी, आदि लोग मौजूद रहे।
Crime 24 Hours / ब्यूरो रिपोर्ट